सियासी जश्न के बीच सवाल: क्या बदली हिमाचल की तस्वीर ?

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हिमाचल प्रदेश में सूक्खू की सरकार के दो साल पूरे हो गए हैं। सरकार अपने तथाकथित सफलतम 2 वर्ष के पूरे होने पर जश्न मना रही है। जहाँ वे अपनी चुनावी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने तथा हिमाचल को अनेक विकास कार्यों की सौगात देने का वादा करते नहीं थक रहे। तो क्या सरकार हकीकत  में अपने वादे के अनुरूप राज्य के  बुनियादी ढांचे में कोई आमूलचूल परिवर्तन कर पाई है ?

क्या बदली हिमाचल की तस्वीर ?

हिमाचल प्रदेश में सूक्खू की सरकार के दो साल पूरे हो गए हैं। सरकार अपने तथाकथित सफलतम 2 वर्ष के पूरे होने पर जश्न मना रही है। जहाँ वे अपनी चुनावी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने तथा हिमाचल को अनेक विकास कार्यों की सौगात देने का वादा करते नहीं थक रहे। तो क्या सरकार हकीकत  में अपने वादे के अनुरूप राज्य के  बुनियादी ढांचे में कोई आमूलचूल परिवर्तन कर पाई है ?

निश्चित रूप से सरकार का मानना है कि उन्होंने चमत्कारिक रूप से राज्य की स्थिति को बदला है जहाँ वे अपनी ओल्ड पेंशन नीति, इंदिरा गांधी सम्मान निधि जैसे तमाम उन योजनाओं का हवाला देते हैं, वहीं विपक्ष सरकार के चुनावी वादे को आधार मानकर उसे पूरा न करने का आरोप लगाती है। 

बहरहाल ये राजनीतिक दलों के लिए उनका अपना सियासी नजरिया हो सकता है। मगर सियासी चश्मे के इतर सरकार के इन 2 वर्षो का आंकलन इसलिए भी जरूरी है कि क्या सरकार, हिमाचल वासियों के उमीद व भरोसे पर कितना सफल हो पाई है ?

अधूरे वादे, अब भी इंतजार में

गौरतलब है कि सूक्खू की सरकार ने चुनाव के पहले हिमाचल की बुनियादी ढांचे में सुधार, रोजगार के नये अवसर व राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से कई महत्वाकांक्षी वादे किए थे। कुछ वादे अनेक शर्तों के साथ लागू भी किये, लेकिन अभी भी अधूरे वादों कि एक लंबी फेहरिस्त है, जो सरकार के 2 वर्ष के जश्न पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।

वादे के फेहरिस्त में 2 वर्ष बीतने के बाद भी युवाओं के लिए रोजगार की समुचित व्यवस्था नहीं कर पाना, गोबर खरीदी के नाम पर सिर्फ योजना की शुरुआत कर देना, फ्री बिजली और महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह देने के अपने वादे के नाम पर अनेक शर्त लगाकर लाभान्वित परिवारों की संख्या को नियोजित तरीके से कम कर देना निश्चित रूप से  सूक्खू सरकार की आलोचना का विषय होना चाहिए।

वित्तीय नियोजन में असफलता

वित्तीय नियोजन के मामले में सूक्खू सरकार हमेशा आलोचना से घिरे रहते हैं। क्योंकि राज्य की आर्थिक स्थिति अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जहाँ राज्य का कर्ज लगभग 90 हजार करोड़ से अधिक हो गया है। आने वाले समय मे ये कर्ज निश्चित रूप से और बढ़ेगी। क्योंकि लगभग 7 फीसदी राजकोषीय घाटे के साथ ओपीएस (पुरानी पेंशन नीति ) और  सम्मान निधि जैसे योजना पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च नहीं कर सकती।

इस वित्तीय अनियनमित्ता के कारण राज्य में कर्मचारियों को समय पर वेतन न मिलना, हिमाचल के प्रति व्यक्ति आय में गिरावट, लोगों के पास रोजी रोटी की कमी जैसे भीषण समस्या खड़ी हो रही है। राज्य सरकार को इस बात के लिए चिंता होनी चाहिए कि राज्य की आर्थिक स्थिति का प्रत्यक्ष  प्रभाव अब हाशिये पर खड़े लोगों पर भी पड़ने लगा है।

हालांकि इसके लिए राज्य सरकार,  केंद्र के द्वारा फंड न मिलने और बीते दिनों हिमाचल में आए आपदा को वित्तीय संकट के लिए ढाल की तरह इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यह सिर्फ एक गुमराह करने वाली बात है क्योंकि केंद्र की तरफ से आपदा के लिए  60 करोड़ कि राशि जारी की गई थी। इसके अलावा केंद्र से मिलने वाली ऐसी किसी भी फंड को नहीं रोका गया है , जो राज्य की आर्थिक बदहाली का कारण हो।

हालांकि सरकार ने कुछ योजनाओं और नीतियों के माध्यम से प्रदेश के विकास की दिशा में प्रयास किए हैं, जिसमें मुख्य रूप से पीएमजीएसवाई-1 के तहत 99 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया गया है। चरण तीन में अधिकांश गांवों को सड़क माध्यम से शहर से जोड़ा जा रहा है । प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 2 के तहत 100 फीसदी काम को पूरा कर लिया गया है। इसके अलावा कुछ परिवारों को फ्री बिजली भी दिया जा रहा है।

लेकिन यह प्रयास जनता की अपेक्षाओं और वादों के अनुरूप नहीं कहे जा सकते। रोजगार, आर्थिक सुधार, और बुनियादी ढांचे में बड़े बदलावों के मोर्चे पर सरकार अब भी संघर्ष करती दिखाई देती है। जिसके लिए सरकार की आलोचना होती है।

सरकार को आने वाले समय में अपनी नीतियों और योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने में तेजी लानी होगी। आर्थिक संकट से उबरने के लिए दीर्घकालिक और व्यावहारिक समाधान खोजने होंगे। हिमाचल प्रदेश की जनता को केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि ठोस परिणाम चाहिए।

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