Himachal Pradesh : समोसा, मुर्गा और सियासी घमासान, आखिर बच्चों को दिए तुम कौन सा ज्ञान ?
यह विडंबना ही है कि जिस विधानसभा में राज्य के कल्याण के लिए सार्थक चर्चाएं होनी चाहिए वहाँ चर्चा के नाम पर सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लग रहे हैं । यह तब और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जब राज्य के युवा विद्यार्थी अपनी नेताओं से सकारात्मक उम्मीद के साथ विधानसभा कि कार्यवाही पर नजर टिकाएं हो।
यह विडंबना ही है कि जिस विधानसभा में राज्य के कल्याण के लिए सार्थक चर्चाएं होनी चाहिए वहाँ चर्चा के नाम पर सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लग रहे हैं । यह तब और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जब राज्य के युवा विद्यार्थी अपनी नेताओं से सकारात्मक उम्मीद के साथ विधानसभा कि कार्यवाही पर नजर टिकाएं हो।
इन दिनों हिमाचल में चल रहे शीतकालीन सत्र में राज्य सरकार ने एक रचनात्मक पहल करते हुए क्षेत्र के विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों को विधानसभा की कार्यवाही को सदन के अंदर में बैठकर अनुभव करने का मौका दिया। इस क्रम में सत्र के दूसरे दिन हटली और ककिरा स्कूल के विद्यार्थियों ने विधानसभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया से मुलाकात कर गुरुवार को होने वाली कार्यवाही की जानकारी ली।
लेकिन सवाल यह है कि जिस विधानसभा में राजनीति का स्तर इतने नीचे चला गया हो, जहाँ सियासी बहस समोसा से शुरू होकर मुर्गे में खत्म हो जाती हो। जहाँ उन बच्चों को आमंत्रित कर भोजन की कमी होने के कारण भूखे पेट घर भेज दिया जाए, उस सदन के माध्यम से सरकार कैसे उन स्कूली बच्चों के अंतर्मन में लोकतंत्र के लिए रचनात्मक सोच ,नैतिक जिम्मेदारी और सामाजिक मूल्यों का विकास कर पाएगी ?
सरकार कि इस बात के लिए सराहना होनी चाहिए कि उन्होंने बच्चों आमंत्रित किया जिससे वे संघीय ढांचा प्रणाली का प्रत्यक्ष अनुभव कर सके। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है जहाँ छात्र – छात्राएं प्रदेश कि सरकार को भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप से घिरते हुए देख रहे थे।
लोकतंत्र की प्रमुख इकाई में से एक विधानसभा, जहाँ से प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है वहाँ पूरा दिन कार्यवाही के नाम पर पक्ष – विपक्ष एक दूसरे के ऊपर सिर्फ आरोप लगाते रहते हों , वहाँ इन बच्चों को लोकतंत्र के बारे में क्या सिखाया जा सकता है।
जिन बच्चों के पाठ्यक्रम में यह सिखाया जाता है कि मीडिया, लोकतंत्र का चौथा पिलर होता है । उनके सामने अगर सरकार के द्वारा मीडिया को दबाने का आरोप लगता हो। जहाँ पर्यावरण और वन्यजीव के सरंक्षण के लिए नई पीढ़ी को जागरूक किया जाना था वहाँ मुख्यमंत्री ही डिनर में जंगली मुर्गा चट कर जाए। जहाँ के बच्चे को अपनी राज्य की संस्कृति और संस्कार के नाम पर गर्व होता हो वहाँ की सरकार ही शराब घोटाले का आरोपी हो। उस राज्य में ऐसी व्यवस्था का प्रत्यक्ष अनुभव निश्चित रूप से उन बच्चों के लिए निराशाजनक रही होगी ।
Read Also : सियासी जश्न के बीच सवाल: क्या बदली हिमाचल की तस्वीर ?