हिमाचल में लंबित पदोन्नति: सूक्खू सरकार की कार्यप्रणाली पर उठते सवाल

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हिमाचल प्रदेश के अलग अलग विभाग में कार्यरत हजारों कर्मचारियों का पदोन्नति को लेकर इंतजार अब काफी लंबी होने लगी है। तमाम वादे के बावजूद राज्य सरकार अभी तक सिर्फ कुछ ही विभाग के कर्मचारियों को पदोन्नति दे सकी है। कर्मचारियों कि लंबित पदोन्नति एक ओर प्रशासनिक अड़चन पैदा कर रही है तो दूसरी ओर सूक्खू सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रही है। आखिर  क्यों पात्रता होने के बावजूद कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं दिया जा रहा ?

हिमाचल प्रदेश के अलग अलग विभाग में कार्यरत हजारों कर्मचारियों का पदोन्नति को लेकर इंतजार अब काफी लंबी होने लगी है। तमाम वादे के बावजूद राज्य सरकार अभी तक सिर्फ कुछ ही विभाग के कर्मचारियों को पदोन्नति दे सकी है। कर्मचारियों कि लंबित पदोन्नति एक ओर प्रशासनिक अड़चन पैदा कर रही है तो दूसरी ओर सूक्खू सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रही है। आखिर  क्यों पात्रता होने के बावजूद कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं दिया जा रहा ?

गौरतलब है कि राज्य कि सूक्खू सरकार ने हिमाचल के कर्मचारियों को उनके वरीयता के आधार पर प्रमोशन देने कि बात कही थी.  लेकिन सरकार के 2 वर्ष बीतने के बावजूद कुछ एक दो विभाग को छोड़ कर किसी भी विभाग के कर्मचारियों को पदोन्नत नहीं किया गया है। इसके बावजूद सरकार अपने तथाकथित सफलतम 2 वर्ष का जश्न मनाने कि तैयारी में जुटी हुई  है। लेकिन सवाल वही है कि राज्य में एक ओर अव्यवस्था फैली हुई है , प्रशासनिक कार्य प्रभावित हैं , वादे पूरे नहीं हुए हैं इसके बावजूद सरकार किस चीज का जश्न मनाने कि तैयारी कर रही है?

बीते वर्ष फरवरी – मार्च में विपक्ष और विभिन्न  कर्मचारी संगठन के द्वारा  सरकार पर पदोन्नति को लेकर दबाव बनाया गया तो सरकार कि ओर से लोकसभा चुनाव में आचार संहिता का हवाला देकर इसे कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते मे डाल दिया गया था। इस पर दायर एक याचिका कि सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार को फटकार लगाई थी कि चुनाव के आड़ में आप सब कुछ कैसे रोक सकते हैं।

आर्थिक संकट या सियासी साजिश ?

किसी भी राज्य में वरीयता के आधार पर पदोन्नति एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है।  जिससे राज्य कि प्रशासनिक प्रणाली सुचारु और क्रमागत रूप से  क्रियान्वित होती है। लेकिन हिमाचल राज्य सरकार कि पदोन्नति को लेकर उदासीनता , सूक्खू सरकार के कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। क्या सरकार खराब आर्थिक स्थिति के कारण पदोन्नति पर ब्रेक लगाई हुई है या सरकार अगली चुनाव में फायदा लेने के लिए अपने कार्यकाल के अंतिम वर्षों में पदोन्नति कर लोगों को गुमराह करना चाहती है।

बिजली विभाग के कुछ पदों के लिए कर्मचारियों के सिर्फ पदनाम बदल दिए गए है , वेतन व भत्ते में कोई अतिरिक्त लाभ नहीं दिया गया है। यह पदोन्नति के नाम पर एक तरह से रिक्त पदों को भरने का माध्यम है जहाँ नाम मात्र के लिए पदोन्नत दिया जाता है। जिसके लिए सूक्खू सरकार कभी  नियमों का हवाला देकर पूर्व सरकार के ऊपर दोष मढ़ देते हैं। तो कभी खराब आर्थिक स्थिति को इसका कारण बताते हैं।

औपचारिकता के नाम पर नियोजित देरी

अराजपत्रित कर्मचारी संघ के अध्यक्ष त्रिलोक ठाकुर ने भी मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि शिक्षा विभाग , स्वास्थ्य विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों में अलग अलग पदों पर पदोन्नति किया जाना था , जिसके लिए विभागीय स्वीकृति भी दी गई , मगर  जानबूझकर बची हुई औपचारिकता को पूरा करने के लिए देर किया जा रहा है। शिक्षा विभाग में तो पदोन्नति के नियम को ही बदल दिया गया है जिसके लिए अभी वित्त विभाग से मंजूरी नहीं आई है , और बिना मंजूरी के किसी भी शर्त में पदोन्नति नहीं किया जा सकता।

बहरहाल एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती है। क्योंकि अगर सरकार के ही बात को सच मान लिया जाए कि पूर्व कि भाजपा सरकार ने  इस तरह कि नीति बनाई है ,  जिससे पदोन्नति जैसे प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रही है , तो सवाल यह है कि सूक्खू सरकार के द्वारा  बीते 2 वर्षों में नीति में बदलाव कर उसे बेहतर क्यों नहीं किया गया ? क्यों राज्य के आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए ठोस नीति नहीं बनाई गई ?

राज्य कि सूक्खू सरकर को इस बात पर विचार करना चाहिए कि उनकी सरकार ने 2 वर्षों में कर्मचारियों के लिए ऐसी कौन सी ठोस नीति बनाई है  जिसके आधार पर उन्हे उनका हक मिलेगा । वरना सियासी बाते तो सियासी बाते होती है जमीन पर इसका कोई औचित्य नहीँ ।

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