दवा अब दर्द बना , जिम्मेदार कौन – फार्मा या सिस्टम?”

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क्या होगा जब आप जिस दवा का सेवन खुद को स्वस्थ रखने के लिए करते हैं ,  वही दवा आपके स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाए ?  इन दिनों हिमांचल में बनने वाली दवा का हाल कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। बीते माह अक्टूबर में दवा विनियामक संस्था यानि केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ( CDSCO ) कि जांच में हिमांचल में बनने वाली 38 दवाई के सेंपल फैल हो गए है , जो कि बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे थे।

दवा अब दर्द बना , जिम्मेदार कौन - फार्मा या सिस्टम?"

क्या होगा जब आप जिस दवा का सेवन खुद को स्वस्थ रखने के लिए करते हैं ,  वही दवा आपके स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाए ?  इन दिनों हिमांचल में बनने वाली दवा का हाल कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। बीते माह अक्टूबर में दवा विनियामक संस्था यानि केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ( CDSCO ) कि जांच में हिमांचल में बनने वाली 38 दवाई के सेंपल फैल हो गए है , जो कि बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे थे।

दरअसल CDSCO हर महीने बाजार से कुछ दवाओं के सेंपल को एकत्र करता है और उनका परीक्षण विभिन्न पैरामीटर पर किया जाता है , लेकिन कुछ दवाएं जो मानक गुणवत्ता के अनुरूप (NSQ) नहीं पाई जाती उन्हे सूचीबद्ध कर , विक्रय पर प्रतिबंध लगाया जाता है और संबंधित फार्मा कंपनी पर उचित कार्यवाही कि जाती है  , ताकि लोगों के स्वास्थ्य के साथ फार्मा कंपनी खिलवाड़ न कर पाए।

लेकिन हिमांचल में चल रहे फार्मा कंपनियों कि मनमानी पर किसी का संज्ञान नहीं है। जुलाई से लेकर अक्टूबर तक पूरे देश में दवाई के 317 सेंपल फेल हुए हैं , लेकिन अकेले हिमांचल में 112 दवाई मानक पर खरे नहीं उतरे जो कि चौकने वाला आंकड़ा हो सकता है। लेकिन अभी तक किसी भी फार्मा कंपनियों के खिलाफ सरकार कि ओर से कोई कार्यवाही नहीं कि गई है।

क्या है परीक्षण मानक ?

भारतीय औषधि और कॉस्मेटिक अधिनियम, 1940 के तहत बाजार मे उपलब्ध दवाइयों की गुणवत्ता और प्रभाव के लिए 10 से अधिक पैरामीटर निर्धारित किए गए हैं। जिसमें मुख्य रूप से दवा में सक्रिय औषधि घटक की मात्रा , निर्धारित रोग के प्रति प्रभाव , घुलनशीलता व शरीर के लिए पॉजिटिव व नेगेटिव रिएक्शन कि संतुलता कि जांच करता है , जो कि विश्व स्वास्थ्य संघठन  (WHO) और अमेरिकी स्वास्थ्य संगठन (FDA) के दिशानिर्देशों का अनुपालन करती है। 

इन मानकों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में उपलब्ध दवाएं सुरक्षित, प्रभावी, और गुणवत्तापूर्ण हों जिसकी जांच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के द्वारा किया जाता है।

खूब फल फूल रहा नकली दवाओं का कारोबार ।

“बूमिंग बीज” के 2022 के एक रिपोर्ट के अनुसार देश में दवाइयों का बाजार 17 अरब डालर का है जिसमें 5 अरब डॉलर कि नकली दवाओं का व्यापार है। नकली दवाओं का व्यापार 33 % कि औसत ग्रोथ रेट से बढी है। जो कि आने वाले समय में और बढ़ने कि उम्मीद है। देश में बड़े बड़े  ऐसे हजारों फार्मा एजेंसी है जो बिना लेबल के दवाई खरीदकर अपना ब्रांडीग कर दवाई को ऊंची दामों में बेंचते हैं। एक रिपोर्ट्स के अनुसार देश में बिकने वाली 38 % दवाई नकली है। इतनी बड़ी मात्रा में क्या संभव है फार्मा कंपनी बिना सरकारी सहयोग के नकली दवाओं का व्यापार कर सकती है ?

फार्मा कंपनियों पर मेहरबान सरकार !

जुलाई से लेकर अभी तक के नकली दवाओं के आँकड़े स्पष्ट रूप से यह बताते हैं कि पूरे देश में बिक रहे नकली दवाइयों का 35 % उत्पादन हिमांचल में हो रहा है। CDSCO के तरफ से  हर महीने नकली दवाओं का लिस्ट जारी किया जाता है। जिसमें हिमांचल नकली दवाओं का हब बनता जा रहा है । हर महीने हिमांचल स्वास्थ्य विभाग कि ओर से नकली दवाई बनाने वाली कंपनी के ऊपर कार्यवाही करने कि बात कही जाती है लेकिन कार्यवाही के नाम पर सिर्फ नोटिस देकर मामला निपटा दिया जाता है।

हिमांचल में 20 ऐसे उद्योग हैं जहाँ कि दवाई बार बार मानक परीक्षण में असफल हो रही है इसके बावजूद हिमांचल कि सरकार कंपनी को ब्लेकलिस्ट नहीं कर पाई है न ही उनका लाइसेंस रद्द करने कि अनुशंसा करती केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ( CDSCO ) का भी रवैया फार्मा कंपनियों के हित को ध्यान मे रखने वाला प्रतीत होता है , क्योंकि लगातार नकली दवाई मिलने के बाद भी अक्टूबर में सिर्फ 3000 दवाई को जांच के लिए भेजा गया था। निश्चित रूप से अगर सेंपल बड़ा होगा तो अन्य फार्मा कंपनियों के दवाई भी इस लिस्ट में शामिल हो सकते थे । इसके अलावा CDSCO नियमों का हवाला देकर नकली दवाई बनाने वाली कंपनियों के नाम को सार्वजनिक भी  नही करती , ताकि बाजार में  कंपनियों कि विश्वसनीयता बनी रहे ।

हश्र यह है कि भारत में खराब दवाओं के निर्माण के लिए फार्मा कपनी , राज्य और केंद्र सरकार सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। लेकिन इसका असर आम जनता को अपनी स्वास्थ्य के साथ समझौता कर उठानी पड़ सकती है।

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