हिमाचल की प्राथमिक शिक्षा पर संकट : अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से उठता भरोसा !
हिमाचल प्रदेश में तमाम सरकारी दावों के बीच सूक्खू सरकार के लिए मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रहा। हाल ही में राज्य के यू डाइस द्वारा जारी आँकड़े के अनुसार राज्य के प्राथमिक स्कूलों में पिछले वर्ष कि तुलना में 54 हजार कम बच्चों ने दाखिला लिया है। जो कि राज्य के प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर सरकार की नाकाम प्रयास को रेखांकित करती है।
हिमाचल प्रदेश में तमाम सरकारी दावों के बीच सूक्खू सरकार के लिए मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रहा। हाल ही में राज्य के यू डाइस द्वारा जारी आँकड़े के अनुसार राज्य के प्राथमिक स्कूलों में पिछले वर्ष कि तुलना में 54 हजार कम बच्चों ने दाखिला लिया है। जो कि राज्य के प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर सरकार की नाकाम प्रयास को रेखांकित करती है।
राज्य की सूक्खू सरकार शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार के लिए कांग्रेस द्वारा शुरू की गई अनेक योजनाओं का हवाला देते रहते हैं। लेकिन राज्य के सरकारी स्कूलों में लगातार घटती दर्ज संख्या राज्य शिक्षा विभाग के लिए नई चिंता का विषय है। जहाँ बढ़ती महंगाई के बावजूद सरकारी स्कूलों मे एडमिशन का आंकड़ा निजी स्कूलों की तुलना मे लगभग आधी है।
आँकड़े चिंताजनक
वैसे हिमाचल में सरकारी स्कूलों मे दाखिला 2003 से लगातार कम हो रही है। 2003 से 2024 तक दर्ज संख्या में 50 फीसदी का गिरावट आई है। हालांकि पूर्व में बीजेपी की सरकार ने इस दिशा में कुछ सराहनीय प्रयास किए थे जिससे स्थिति थोड़ी बदलती हुई दिखी थी।
लेकिन सत्र 2024 – 25 के आँकड़े चौकाने वाले आए हैं। क्योंकि इस सत्र में सिर्फ 22 हजार बच्चों ने ही सरकारी स्कूलों मे एडमिशन लिया है जो कि कुल एडमिशन का सिर्फ 32 फीसदी है। वहीं प्राइवेट स्कूल में 46 हजार से ज्यादा बच्चों ने प्रवेश लिया है। इसके पहले वाले सत्र 2023 – 2024 में सरकारी स्कूल में 49 हजार बच्चे एनरोल हुए थे बल्कि निजी स्कूलों में 48 हजार बच्चों ने एडमिशन लिया था।
इसके पहले भी लगभग लगभग प्रति वर्ष सरकारी और निजी स्कूलों में 50 – 50 % एडमिशन होते रहा है। लेकिन इस सत्र में साफ पता चल रहा है कि हिमाचल की सरकारी शिक्षा व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ रहा है। इसीलिए राज्य में 2457 ऐसे प्राइमरी स्कूल है जहाँ स्कूल का कुल दर्ज संख्या 10 से कम है। वहीं 150 से अधिक दर्ज संख्या वाले सिर्फ 61 विद्यालय बच गए हैं।
सरकारी स्कूल को क्यों लग रहा है ग्रहण ?
जहाँ देश में एक ओर दिल्ली, छत्तीसगढ़, असम जैसे राज्य में लगातार सरकारी स्कूलों में अभिभावकों की रुचि बढ़ रही है वहीं हिमाचल के सरकारी स्कूल से बच्चे लगातार दूरी बना रहे हैं। हिमाचल में घटती बच्चों की संख्या के लिए किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन मुख्य रूप से सरकार की लचर व्यवस्था ने सरकारी स्कूल को सिर्फ एक भवन बना दिया है।
हिमाचल में सूक्खू सरकार के सभी विद्यालयों में शिक्षक की पर्याप्त व्यवस्था के दावे के बावजूद हकीकत यह है कि 20 फीसदी विद्यालय ऐसे है जहाँ एक भी शिक्षक नहीं है या केवल एक शिक्षक हैं। राज्य के कुल 15 हजार सरकारी स्कूलों मे से 3500 स्कूलों में शिक्षक की इतनी कमी है, कि एक रिपोर्ट के मुताबिक 85 फीसदी बच्चे आठवी कक्षा में होने के बावजूद दूसरी कक्षा के गणित का प्रश्न हल नहीं कर सकते।
इसीलिए आभिभावक तमाम आर्थिक बदहाली के बावजूद ये साहस नहीं कर पाते कि वे अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेज सके। और जो अभिभावक बिल्कुल भी असमर्थ हैं निजी स्कूल के शुल्क देने के लिए वही सरकारी स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करा रहे हैं।
बदहाल शिक्षा के लिए सरकार जिम्मेदार
एक दौर था जब हिमाचल प्रदेश शिक्षा के स्तर पर देश में तीसरे नंबर पर आता था लेकिन बीते वर्षों में शिक्षा का ग्राफ इतना नीचे गया है कि मौजूद वक्त में हिमाचल शिक्षा गुणवत्ता के मामले में 21 वें स्थान पर पँहुच गया है। और यह स्थिति तब है जब राज्य सरकार कुल बजट का 20 फीसदी शिक्षा के लिए खर्च कर रहा है , जो कि देश में दिल्ली और असम के बाद सबसे ज्यादा है।
शिक्षा पर अधिकतम खर्च के दावे बावजूद, गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव सरकार की शिक्षा के प्रति न्यूनतम प्रयासों को रेखांकित करती है। तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हिमाचल प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का गिरता स्तर और सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या सरकार की असफलता का मानक नहीं होना चाहिए ?
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