कैग रिपोर्ट ने खोली स्वास्थ्य सेवाओं की पोल : ना डॉक्टर, ना दवा जाए तो जाए कहाँ मरीज भला !
बेशक ! हिमाचल प्रदेश का नाम स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता है और तत्कालीन सरकार द्वारा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा भी किया जाता है । लेकिन जिस राज्य में प्रति तीन हजार व्यक्तियों पर केवल एक डॉक्टर हो, वहाँ गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किए जाने वाले तमाम दावे भ्रामक लगते हैं।

बेशक ! हिमाचल प्रदेश का नाम स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता है और तत्कालीन सरकार द्वारा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा भी किया जाता है । लेकिन जिस राज्य में प्रति तीन हजार व्यक्तियों पर केवल एक डॉक्टर हो, वहाँ गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किए जाने वाले तमाम दावे भ्रामक लगते हैं।
दरअसल सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन के संबंध में CAG ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें हिमाचल की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर परिलक्षित होती है। रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में कुछ कुछ ऐसे आदिवासी जिले हैं जहाँ 100 फीसदी डॉक्टर्स की कमी है। तो वहीं पूरे राज्य में हेल्थ सेक्टर में काम करने वाले स्टाफ की संख्या में 42 फीसदी की कमी है।
क्या यह आँकड़े आँकलन करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि राज्य की स्वास्थ्य ढांचा भगवान भरोसे चल रही है। क्योंकि कठिन भौगोलिक परिस्थिति के बावजूद ट्राइबल क्षेत्र में चिकित्सकों की 100 फीसदी कमी सीधे तौर पर सरकारों का राज्य की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को रेखांकित करती है।
स्वास्थ्य सेवाओं में मानव संसाधन की भारी कमी
भारत के नियंत्रक एवं महालेखक परीक्षक ( सीएजी ) के द्वारा जारी रिपोर्ट, हिमाचल प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में भारी मानव संसाधनों की कमी को उजागर करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लगभग 42 फीसदी कर्मचारी – डॉक्टर की कमी है। किन्नौर जिले में 57 फीसदी चिकित्सकों की कमी व लाहौल – स्पिती के जिला अस्पताल में 89 फीसदी डाक्टर्स की कमी है।
इसके विपरीत कुछ आँकड़े अचंभित कर देने वाले व हास्यास्पद हैं। जैसे कि एक ओर दूर दराज के इलाकों में 89 फीसदी तक डॉक्टर्स की कमी है तो शिमला के जिला अस्पताल में 33 फीसदी अतिरिक्त व सोलन के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 13 फीसदी अधिक डाक्टर्स हैं। इसी तरह लगभग सभी जिलों में एक्सरे टेक्नीशियन , फिजियोथेरेपिस्ट व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की असंतुलित व्यवस्था है।
अभावग्रस्त बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं
राज्य की बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में क्या ही कहा जाए। जहाँ 773 वेंटीलेटर में से 149 खराब स्थिति में पड़ा हुआ है। 19 अलग – अलग स्वास्थ्य केंद्र में स्वीकृति के बाद भी एक्सरे मशीन न खरीदा गया हो। सात सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहित तीन अलग अलग अस्पताल मे अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन की अनुपलब्धता हो। इसके अलावा राज्य स्वीकृत बेडों की संख्या में 8 से 71 फीसदी कि कमी व अन्य स्वास्थ्य परीक्षण विभाग में मशीनों की किल्लत से जूझ रही है।
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खराब प्रबंधन मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़
राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं किस कदर बीमार है आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि कैग के 2022 – 23 के रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर मामलों में दवाइयों और सेंपल तक समय में नहीं लिया गया। एक ओर गरीब मरीज के पास पैरासीटामॉल खरीदने के लिए पैसा नहीं होता, वहीं सरकारी अस्पताल में बीते वर्षों में 342 लाख की दवा एक्सपायर हुई है।
हिमाचल स्वास्थ्य विभाग खराब प्रबंधन का सबसे मानक उदाहरण होना चाहिए क्योंकि तमाम प्रशासनिक संजीदगी के बावजूद राज्य के सात संस्थान ऐसे थे, जहाँ बिना लाइसेंस के बावजूद एक्सरे किया जा रहा था। यही नहीं 25 में से 12 ब्लड बैंक बिना नवीनीकरण के चल रहे थे। अधिकांश केंद्र पर न तो पानी पीने की समुचित व्यवस्था है न ही जरूरी लाइसेंस।
न्यूनतम बजट वितरण मुख्य समस्या
गुणवत्ताहीन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार का न्यूनतम प्रयास प्रमुख कारणों में से एक है। कैग ने भी अपने रिपोर्ट में राज्य के खराब प्रबंधन की आलोचना की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में प्रदेश का कुल व्यय लगभग 7 फीसदी से कम रहा है, जो कि राष्ट्रीय लक्ष्य 8 फीसदी से बहुत कम है। और इसके लिए वर्तमान सरकार के साथ साथ पूर्ववर्ती सरकारों का भी दोष है।
राज्य का स्वास्थ्य ढांचा न केवल अपर्याप्त है, बल्कि इसके प्रबंधन में भारी खामियां हैं। सीएजी की रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, खराब प्रबंधन, और न्यूनतम बजट आवंटन राज्य की जनता के स्वास्थ्य के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।