गोबर खरीदेगी सरकार ? क्या किसानों का होगा उद्धार ?

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हिमाचल में सूक्खू सरकार 11 दिसंबर को सरकार के 2 वर्ष पूरे होने पर जश्न कार्यक्रम मनाने जा रही है। इसी दिन से सरकार राज्य में गोबर खरीदने कि प्रक्रिया भी  शुरू करेगी। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने पशुपालकों से गोबर खरीदने का वादा किया था। जिसे सरकार 2 वर्ष गुजरने के बाद शुरू करने वाली है।

गोबर खरीदेगी सरकार ? क्या किसानों का होगा उद्धार ?

हिमाचल में सूक्खू सरकार 11 दिसंबर को सरकार के 2 वर्ष पूरे होने पर जश्न कार्यक्रम मनाने जा रही है। इसी दिन से सरकार राज्य में गोबर खरीदने कि प्रक्रिया भी  शुरू करेगी। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने पशुपालकों से गोबर खरीदने का वादा किया था। जिसे सरकार 2 वर्ष गुजरने के बाद शुरू करने वाली है।

हालांकि सरकार ने किसानों से गोबर खरीदने के लिए अनेक शर्तें रखी है , निश्चित ही इन शर्तों को पालन करते हुए किसानों को गोबर बेचने में दिककते आएगी । क्योंकि छोटे व मध्यम किसान सरकार के शर्तों का आसानी से पालन नहीं कर सकते , तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार विपक्ष के दबाव में और अपनी चुनावी वादों के खाना पूर्ति करने के लिए इस योजना कि शुरुआत कर रही है ?

क्योंकि विपक्ष हमेशा सरकार पर उनके द्वारा दिए  गए 10 गारंटियों को पूरा न करने और लोगों को भ्रमित करने का आरोप लगाती रही है। हाल ही के दिनों में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक कार्यक्रम में सरकार  द्वारा गोबर न खरीदने पर लोगों को ठगने का आरोप लगाया था। हालांकि यह एक उनका सियासी नजरिया हो सकता है , लेकिन यह एक  हकीकत भी है जिसे नकारा नहीं जा सकता। 

क्योंकि सरकार ने 2 वर्ष के कार्यकाल में अपनी चुनावी वादों को पूरा करने में जो संजीदगी दिखाई है उसमें अनेक सवाल उठते हैं । चाहे वह गोबर खरीदी पर अनेक बार नियमों में परिवर्तन कर नियोजित तरीके से देरी करना हो या अनेक शर्तों के साथ महिलाओं को 1500 रुपये देने के लिए अनेक महिलाओं को अपात्र घोषित कर देना हो ।

सरकार के अहसान से किसान परेशान

सरकार ने 11 दिसंबर से गोबर खरीदने कि घोषणा कर अपना चुनावी वादा तो पूरा कर लिया। लेकिन क्या यह योजना किसानों को फायदा पँहुचा पाएगी ? क्योंकि सरकार ने चुनाव से पहले गोबर खरीदने का वादा किया था लेकिन सरकार के नई शर्तों के अनुसार अब किसान सिर्फ जैविक खाद ही बेंच पाएगी. तो सवाल यह उठता है कि जिस जैविक खाद का बाजार में 10 रुपये प्रति  किलो कीमत है उसे सरकार 3 रुपये मे खरीदकर किसानो को कैसे आर्थिक सहायता पँहुचाएगी ? इसके अलावा अपने ही बेचे खाद को किसान बाद में सरकार से अगर खरीदना चाहे तो किसान को प्रति किलो 12 रुपये खर्च करने पड़ेंगे , यह तो सीधा किसानों कि अर्थव्यवस्था पर हमला नहीं  है।

सरकार के लिए योजना आसान नहीं

निश्चित रूप से इस योजना को लेकर सरकार राज्य के साथ साथ साथ देश में वाहवाही लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रही लेकिन इस योजना को हिमाचल में साकार कर पाना बहुत चुनौती पूर्ण होगा। क्योंकि छत्तीसगढ़ में इस योजना कि शुरुआत कि गई थी लेकिन तमाम वादे के अनुरूप  भूपेश बघेल को भी  अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली थी। छत्तीसगढ़ में कुछ समय चलने के बाद अधिकतर जगहों पर इस योजना को बंद कर दिया गया था।

क्योंकि अधिकतर किसानों के पास अपनी खुद कि जमीन होती है , जिसके कारण किसान अपना खाद बेंचना नहीं चाहता। साथ ही अप्रशिक्षित किसान गोबर से अच्छी गुणवत्ता का जैविक खाद नहीं बना सकता , जिसके कारण कंपनी ऐसे खाद को खरीदना नहीं चाहती। बरसात में ऐसे भी पशुओं के गोबर से जैविक खाद बनाना मुश्किल होता है। अर्थात चुनौतियाँ बहुत है , संभावना बहुत कम ।

तो सवाल यह है कि सरकार के पास उनके ही पार्टी के मुख्यमंत्री ( भूपेश बघेल )  का असफल सेंपल होने के बाद इस योजना को सरकार आखिर क्यों शुरू करना चाहती है ? शायद सरकार कागज पर इस योजना कि शुरुआत कर अपने वादे कि पूर्ति करना चाहती है। क्योंकि किसानों के हित मे कागज पर लाई गई योजना बाहर से आकर्षक दिखती है।  बहरहाल चुनौती पूर्ण तो है लेकिन देखना होगा सरकार किस तरह इस योजना का क्रियान्वयन करती है ?

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