राज्य में न नौकरी न रोजगार, वादे पूरे न कर पाई सरकार ?

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प्रति वर्ष एक लाख सरकारी नौकरी का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार  24 महीने बीत जाने के बाद भी सिर्फ 4,400 लोगों को ही पक्की नौकरी दे पाए  ,और इसके एवज में लाखों आउट सोर्स नौकरियाँ समाप्त कर दी जाए तो स्वाभाविक रूप से सरकार से सवाल पुछा जाना चाहिए कि कहाँ है आपकी 5 लाख नौकरी कि गारंटी ? 

राज्य में न नौकरी न रोजगार, वादे पूरे न कर पाई सरकार ?

प्रति वर्ष एक लाख सरकारी नौकरी का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार  24 महीने बीत जाने के बाद भी सिर्फ 4,400 लोगों को ही पक्की नौकरी दे पाए  ,और इसके एवज में लाखों आउट सोर्स नौकरियाँ समाप्त कर दी जाए तो स्वाभाविक रूप से सरकार से सवाल पुछा जाना चाहिए कि कहाँ है आपकी 5 लाख नौकरी कि गारंटी ? 

देश के टॉप 10 बेरोजगारी वाले राज्य कि सूची में शामिल हिमाचल में , सरकार 3 साल पहले शुरू हुई भर्तियों के रिजल्ट जारी न करे। विभिन्न पेपर लीक के कारण भर्तियाँ अनिश्चित समय के लिए स्थगित कर दी जाए , तो तमाम उन नेताओं और व्यवस्था से सवाल होनी चाहिए , जिन्होंने अपने पहले कैबिनेट कि मीटिंग में एक लाख नौकरी देने का वादा किया था।

गौरतलब है कि 2022 में कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल में बेरोजगारी का मुद्दा जोरों – शोरों से उठाया और लोगों को विश्वास दिलाया कि उनकी पार्टी कि सरकार बनने के बाद 5 लाख लोगों को नौकरी दी जाएगी जिससे राज्य में बेरोजगारी कम होगी। लोगों ने वोट दिया , कांग्रेस सत्ता में भी आई लेकिन आलम यह है कि सरकारी आँकड़े के अनुसार  जो बेरोजगारी दर  वित्तीय वर्ष 2020 – 2021 में  3 फीसदी थी वो बढ़कर 2022 – 2023 में  साढ़े चार फीसदी तक पँहुच गई है , 2023 – 2024 में यह इससे भी ज्यादा होगी ।

सरकार का बेरोजगारों के प्रति असंवेसदनशील रवैया ?

यह विडंबना है कि 6600 से अधिक पदों का कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद विज्ञापित नहीं करा पाने वाली सरकार , बेरोजगार युवाओं से भर्ती के नाम पर तकरीबन 5 करोड़ कि फीस लेकर आज तक परीक्षा न लेने के बाद खुद को युवाओं का मसीह बताए तो बड़ा हास्यास्पद लगता है।

क्योंकि हिमाचल के सरकारी स्कूलों में तकरीबन 6000 पद खाली हैं ऐसे ही अलग अलग विभाग में 1 लाख 70 हजार पद रिक्त है जिसके इंतजार में युवा डिग्री लिए बैठे रहे , लेकिन सरकार नया फरमान लाकर 2 साल से खाली पद को खत्म कर करने का आदेश देते हैं। तो सरकार का बेरोजगारों से किए चुनावी  वादे कि गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक हो जाता है।

हिमाचल , युवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण

हिमाचल युवा प्रदेश है जहाँ कि आधी आबादी युवाओं कि है , लेकिन सरकारों कि विफलता और कमजोर प्रबंधन के कारण 8 लाख युवा बेरोजगार है,जो कि पढे लिखे पंजीकृत हैं । और यह आंकड़ा सरकारी है जमीन पर आप देखेंगे तो हर दूसरे व्यक्ति के पास रोजी रोटी के लिए उपयुक्त काम नहीं है। ऐसे मे या तो वह पलायन कर जाता है या न्यूनतम आवश्यकताओं कि पूर्ति करने के लिए संघर्ष करता है।

हिमाचल में पढे लिखे बेरोजगारों कि स्थिति को समझने के लिए आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि एक संविदा चपरासी के पद के लिए 1700 आवेदन आए जिसमें 90 से अधिक कट ऑफ गया। और कमोबेश  हिमाचल में यह स्थिति पहले भी रही है।  पूर्व कि सरकारों ने कोविड कि वजह से रोजगार उपलब्ध न होने कि वजह बताई तो वर्तमान कि सरकार वित्तीय स्थिति और हिमाचल में आए प्राकृतिक आपदा को अपना ढाल बनाती रही । लेकिन सवाल यह है कि  बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए एक तरफ कुआं व दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है , तो वह जाए तो जाए कहाँ ? 

युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी, रिक्त पदों को समाप्त करने की नीतियां, और परीक्षा आयोजित करने में सरकार की विफलता यह दर्शाती है कि रोजगार देने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। हिमांचल के युवाओं के लिए यह स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण है, जहां पढ़े-लिखे बेरोजगार पलायन या संघर्ष के लिए मजबूर हैं।

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस सरकार बचे हुए कार्यकाल में अपने वादों को पूरा कर पाएगी, या यह भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह बहानेबाजी और नीतिगत अस्थिरता का ही उदाहरण बनकर रह जाएगी?

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